"सब चुप हैं... लेकिन सवाल ज़िंदा हैं"
राजस्थान के दो प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों की दो मौतों ने पूरे चिकित्सा जगत को झकझोर कर रख दिया है। लेकिन अफ़सोस... सरकार चुप है, सिस्टम चुप है, अधिकारी चुप हैं, और कॉलेज प्रशासन तो जैसे संवेदनाएं कहीं छोड़ आया है।
जोधपुर: डॉक्टर राकेश विश्नोई की पीड़ा कौन समझेगा?
एसएन मेडिकल कॉलेज के होनहार पीजी स्टूडेंट डॉ. राकेश विश्नोई ने सल्फास खाकर अपनी जान दे दी। वजह—विभागीय प्रताड़ना। लेकिन उनकी मौत के पीछे सिर्फ मानसिक पीड़ा नहीं, बल्कि सिस्टम की लापरवाही भी उतनी ही जिम्मेदार है।
उन्हें बचाया जा सकता था। जोधपुर में ही इलाज मिल जाता तो शायद वो ज़िंदा होते। लेकिन प्रशासन ने एक्मो मशीन न होने का बहाना बनाकर उन्हें जयपुर रेफर कर दिया।
कड़वा सच ये है कि एक्मो मशीन कॉलेज के पास थी—but पूरी नहीं थी।
अगर कॉलेज प्रशासन चाहता, तो वो उपकरणों को कहीं से भी अरेंज करता। पाँच घंटे थे—उम्मीद थी, ज़िंदगी थी। लेकिन... उम्मीद पर सिस्टम भारी पड़ गया।
इतना ही नहीं, उन्हें निजी एंबुलेंस से भेजा गया। क्या एक बड़े सरकारी अस्पताल के पास खुद की अत्याधुनिक एंबुलेंस भी नहीं?
सरकार कहती है, दानदाताओं से एएलएस एंबुलेंस मिली हैं—but ज़मीन पर नजारा कुछ और ही है।
उदयपुर: डॉक्टर रवि की मौत– एक करंट जो पूरे सिस्टम को हिला देना चाहिए था
आरएनटी मेडिकल कॉलेज, उदयपुर में डॉक्टर रवि की मौत ने ये साबित कर दिया कि लापरवाही जानलेवा हो सकती है।
कॉलेज में एक सामान्य सा वाटर कूलर भी समय पर ठीक नहीं किया गया। उसी में करंट था, और उसी ने एक होनहार डॉक्टर की जान ले ली।
लेकिन कॉलेज प्रशासन कहता है– "वाटर कूलर में करंट नहीं था।"
और जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, तो वह भी चुप थी।
डॉक्टर की मौत के बाद भी डॉक्टर ही सच नहीं लिख पा रहे।
उन रेजिडेंट्स की बातें किसे सुननी है जिन्होंने खुद रवि को करंट लगने के बाद देखा था? उनके अनुसार बॉडी पर करंट के निशान थे—but रिपोर्ट में नहीं थे। ये सिर्फ चुप्पी नहीं, एक साजिश है... सच्चाई को दबाने की।
और अब सब चुप हैं...
कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। कोई सुधार की बात नहीं करता। कोई यह नहीं कहता कि “हमसे गलती हुई”।
साथी डॉक्टर सड़कों पर हैं, धरनों पर हैं, हड़ताल पर हैं।
पर जिनके हाथों में सिस्टम है, जिनके कंधों पर जिम्मेदारी है– वो सब चुप हैं।
क्योंकि इस चुप्पी में ही उनका बचाव है। लेकिन सच यह है कि यह चुप्पी एक दिन चीख पड़ेगी।
हम भुला सकते हैं डॉक्टरों की ड्यूटी, उनकी मेहनत, उनके आँसू—but उनकी मौत नहीं।
हम भूल सकते हैं पोस्टमार्टम की रिपोर्ट—but वो माँ-बाप की चीखें नहीं।
हम चुप हो सकते हैं—but सच कभी चुप नहीं होता।
0 Comments